बोली ऐसी बोलिए,
मन हर्षित हो जाए,
निज मन शीतल रहे,
औरों का मन भी हर्षाए।
वाणी सम छूरी नहीं,
रखती है तेज धार,
छूरी का दर्द भर जाए,
ना सह पाए मन,
वाणी का वार।
देह का मोल रहे नहीं,
वाणी का मोल रह जाए,
जो घाव कभी भरे नहीं,
वाणी से भर जाए।
FamilyPoetrySociety Social Sciences & PhilosophyHindi
Summary
बोली ऐसी बोलिए,
मन हर्षित हो जाए,
निज मन शीतल रहे,
औरों का मन भी हर्षाए।
वाणी सम छूरी नहीं,
रखती है तेज धार,
छूरी का दर्द भर जाए,
ना सह पाए मन,
वाणी का वार।
देह का मोल रहे नहीं,
वाणी का मोल रह जाए,
जो घाव कभी भरे नहीं,
वाणी से भर जाए।